Monday, 31 August 2020

ग्रहों का विस्तृत परिचय





शुभ
-अशुभ गृह

शुभ चन्द्रमा,शुभ बुध, शुक्र और गुरु ये क्रम से अधिकाधिक शुभ माने गए है। अर्थात चन्द्रमा से बुध,बुध से शुक्र और शुक्र से गुरु अधिक शुभ है। सूर्य,मंगल,शनि  राहु  ये क्रम से अधिकाधिक पापी गृह कहे गये है अर्थात सूर्य से मंगल ,मंगल से शनि और शनि से राहु अधिक पापी गृह है। 

तालिका संख्या 5.1

उच्च-नीच गृह तालिका

गृह

उच्च राशि

मूलत्रिकोण राशि

स्वराशि

नीच राशि

सूर्य

मेष   10 डिग्री

सिंह 0°-20°

सिंह

तुला   10 डिग्री

चंद्रमाँ

वृष    3 डिग्री

वृष  4°-20°

कर्क

वृश्चिक  3 डिग्री

मंगल

मकर 28 डिग्री

मेष  0°-12°

मेष व वृश्चिक

कर्क   28 डिग्री

बुध

कन्या 15 डिग्री

कन्या  16°-20°

मिथुन  कन्या

मीन   15 डिग्री

गुरु

कर्क    5 डिग्री

धनु     0°-10°

धनु  मीन

मकर   5 डिग्री

शुक्र

मीन   27 डिग्री

तुला   0°-15°

वृष  तुला

कन्या  27 डिग्री

शनि

तुला   20 डिग्री

कुम्भ 0°-20°

मकर  कुम्भ

मेष   20 डिग्री

राहु

मिथुन 15 डिग्री

कन्या  0°-15°

कन्या

धनु    15 डिग्री

केतु

धनु    15 डिग्री

मीन  0°-15°

मीन

मिथुन 15 डिग्री

 

प्रत्येक गृह जिस राशि में उच्च का होता है। उससे सांतवी राशि में नीच का होता है तथा उसके परम अंश समान रहते है। ग्रहों के उच्च-नीच के बोध से ही कुंडली का फलादेश किया जाता है।

 सभी ग्रहों की अपनी उच्च  नीच राशियाँ हैं और ग्रहों की अपनी मूलत्रिकोण राशि भी होती है. किसी भी ग्रह की सबसे उत्तम स्थिति उसका अपनी उच्च राशि में होना माना गया है, उसके बाद मूलत्रिकोण राशि में होना उच्च राशि से कुछ कम प्रभाव देता है. यदि ग्रह स्वराशि का है तब मूल त्रिकोण से कुछ कम प्रभावी होगा लेकिन ग्रह की स्थिति तब भी शुभ ही मानी जाती है. इसके बाद मित्र राशि में भी स्थिति ठीक ही कही गई है. यदि सम राशि में है तब ना अच्छा और ना ही बुरा होता है. शत्रु राशि में ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है क्योंकि यहां ग्रह क्षोभित अवस्था का माना गया है जो हमेशा क्षोभ अर्थात क्रोध में ही रहता है क्योंकि शत्रु के साथ कोई कैसे खुश रह सकता है भला! यही हाल ग्रहों का भी है कि वह शत्रु राशि में होते हुए अपने पूरे फल नहीं दे पाते हैं. नीच राशि ग्रह की सबसे अशुभ अवस्था कही गई है।

राहु/केतु की उच्च – नीच राशियों को लेकर मतभेद हैं. कई विद्वानों के अनुसार राहु की उच्च राशि वृष है और केतु की वृश्चिक राशि उच्च है लेकिन मतान्तर से राहु की उच्च राशि मिथुन भी मानी गई है और केतु की उच्च राशि धनु मानी गई है.

 

इसी तरह से राहु की नीच राशि वृश्चिक  धनु बन जाएगी क्योंकि ग्रह जिस राशि में उच्चता पाते हैं ठीक 180 अंश की दूरी पर वह नीच हो जाते हैं. केतु की नीच राशि वृष  मिथुन बन जाएगी. इसके अलावा राहु को कन्या  कुंभ में भी शुभ माना गया है. अगर पराशर का मत देखें तो राहु कर्क राशि में भी बुरे फल प्रदान नहीं करता है. वैसे तो राहु/केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नही हैं फिर भी उपरोक्त कुछ राशियों में वह बुरा फल नहीं देते हैं.

 

जैसा की ऊपर लिखित है की राहु और केतु के बलाबल के बारे में असहमति है विभिन्न स्रोतों से ज्योतिष संबंधित संग्रहित जानकारी के अपने नोटस् से मैं निम्नलिखित जानकारी दे रहा हूँ।

 

तालिका संख्या 5.2

गृह

उच्च राशि

मूलत्रिकोण राशि

स्वराशि

नीच राशि

राहु

वृष

मकर

कन्या

वृश्चिक

केतु

वृश्चिक

कर्क

मीन

वृष

 

तालिका संख्या 5.3

गृह

उच्च राशि

मूलत्रिकोण राशि

स्वराशि

नीच राशि

राहु

मिथुन

कुम्भ

कन्या

धनु

केतु

धनु

सिंह

मीन

मिथुन


अधिकतर विद्वान तालिका संख्या 5.2 का समर्थन करते हैं।ज्योतिष के अनुसार ग्रहों का बल घटते क्रम में क्रमशः उच्च,मूल त्रिकोण, और स्वराशि में होता है.इसलिये, इन राशियों से 7वीं राशि में उनकी निर्बलता भी घटते क्रम में होगी।

विशेष टिप्पणी: कृष्णमूर्ति पद्धति में राहु और केतु को उनके ग्रह  होने के कारण उच्च, मूलत्रिकोण, और स्वराशि का विचार नहीं किया गया है .उनका मानना है कि ये प्रथम तो उस ग्रह का फल देंगें जिनसे युति कर रहे हैं अन्यथा उन ग्रह का जिनसे दृष्ट हैं, और अंत में उस ग्रह का जिसकी राशि में स्थित हैं. इस प्रकार निश्चित ही राहु और केतु का बल उस ग्रह के बल पर निर्भर है जिससे वे युति या दृष्टि संबंध बनाते हैं या जिस ग्रह की राशि में स्थित हैं।

ग्रहों का अस्त  उदय

ग्रहों की दो प्रकार की गति होती है-वक्री गति(Retrograde) और सरल गति(Direct) इन गतियों के आधार पर सभी गृह सूर्य से भिन्न- भिन्न राशियों पर अस्त होते हैं। जिसकी तालिका निम्न प्रकार हैं।

तालिका संख्या 5.4

ग्रहों की अस्त तालिका/सारणी

गृह

चंद्रमाँ

मंगल

बुध

गुरु

शुक्र

शनि

सरल गति(Direct)

±12°

±17°

±14°

±11°

±10°

±16°

वक्री गति(Retrograde)

 

±8°

±12°

±11°

±8°

±16°

 ग्रहों की मैत्री-शत्रुता

ग्रहों की मित्रता-शत्रुता को पांच प्रकार से वर्गिकत किया गया है-अधिमित्र,मित्र,सम,शत्रु और अधिशत्रु। कुंडली में गृह मित्र के भाव में हो तो शुभ और शत्रु के भाव में हो तो अशुभ फल देता है।

तालिका संख्या 5.5

ग्रहों की स्वाभाविक/प्राकृतिक/नैसर्गिक मैत्री तालिका

गृह

मित्र गृह

सम गृह

शत्रु गृह

सूर्य

चं.,मं.,बृ.

बु.

शु.,.,रा.,के.

चंद्रमाँ

सू.,बु.

.,शु.,बृ.,मं.

रा.,के.

मंगल

सू.,चं.,बृ., के.

शु.,.

बु.,रा.

बुध

सू.,शु.

मं.,बृ.,.,के.,रा.

चं.

गुरु

सू.,चं.,मं.

.,रा.,के.

बु.,शु.

शुक्र

बु., ., रा.,के.

बृ.,मं.

सू.,चं.,

शनि

बु., शु.,रा.,

बृ.

सू.,चं.,मं.,के.

राहु

शु.,.

बु., बृ.

सू.,मं.,चं.,के.

केतु

मं.,शु.

बु., बृ.

.,रा.,सू.,चं.

 

 

 

सूर्य

चंद्रमाँ

मंगल

बुध

गुरु

शुक्र

शनि

राहु

केतु

सूर्य

 

मित्र

मित्र

सम

मित्र

शत्रु

शत्रु

शत्रु

शत्रु

चंद्रमाँ

मित्र

 

सम

मित्र

सम

सम

सम

शत्रु

शत्रु

मंगल

मित्र

मित्र

 

शत्रु

मित्र

सम

सम

शत्रु

मित्र

बुध

मित्र

शत्रु

सम

 

सम

मित्र

सम

सम

सम

गुरु

मित्र

मित्र

मित्र

शत्रु

 

शत्रु

सम

सम

सम

शुक्र

शत्रु

शत्रु

सम

मित्र

सम

 

मित्र

मित्र

मित्र

शनि

शत्रु

शत्रु

शत्रु

मित्र

सम

मित्र

 

मित्र

शत्रु

राहु

शत्रु

शत्रु

शत्रु

सम

सम

मित्र

मित्र

 

शत्रु

केतु

शत्रु

शत्रु

मित्र

सम

सम

मित्र

शत्रु

शत्रु

 

 

तात्कालिक मैत्री

स्वाभाविक/प्राकृतिक/नैसर्गिक मैत्री के अलावा तात्कालिक मैत्री का भी विचार करना होता है। दोनों मित्रता(नैसर्गिक और तात्कालिक) के आधार पर पंचधा मैत्री चक्र बनता है।जिस भाव में गृह स्थित होता है। उससे 2,3,4 तथा 10,11,12 स्थानों में स्थित गृह तात्कालिक मित्र होते है तथा 5,6,7 और 7,8,9 एवं गृह के साथ स्थित गृह तात्कालिक शत्रु होते है। ग्रहों की तात्कालिक मैत्री जन्म कुंडली के आधार पर निर्धारित की जाती है। उदाहरण कुंडली के आधार पर तात्कालिक मैत्री निम्न अनुसार होगी।

उदाहरण कुंडली

 

तालिका संख्या 5.6

ग्रहों की तात्कालिक मैत्री तालिका

गृह

तात्कालिक   मित्र

तात्कालिक शत्रु

सूर्य

शु.,मं.,रा.,.,बृ.

बु.,चं.,के.

चंद्रमाँ

शु.,मं.,रा.

के..,बृ.,सू.,बु.

मंगल

रा.,चं., बृ.,सू.,बु.

के.,.,शु.

बुध

शु.,मं.,रा.,.,बृ.

सू.,चं.,के.

गुरु

शु.,मं.,रा.,.,बु.,सू.,के.

चं.

शुक्र

रा.,बु.,सू.,चं.,बृ.

मं.,.,के.

शनि

बु.,सू.,के.,बृ.

शु.,मं.,रा.,चं.

राहु

बु.,सू.,चं.,बृ.,मं.,शु.

.,के.

केतु

बृ., .

बु.,सू.,चं.,मं.,शु.,रा.,

 

 

 

सूर्य

चंद्रमाँ

मंगल

बुध

गुरु

शुक्र

शनि

राहु

केतु

सूर्य

 

शत्रु

मित्र

शत्रु

मित्र

मित्र

मित्र

मित्र

शत्रु

चंद्रमाँ

शत्रु

 

मित्र

शत्रु

शत्रु

मित्र

शत्रु

मित्र

शत्रु

मंगल

मित्र

मित्र

 

मित्र

मित्र

शत्रु

शत्रु

मित्र

शत्रु

बुध

शत्रु

शत्रु

मित्र

 

मित्र

मित्र

मित्र

मित्र

शत्रु

गुरु

मित्र

शत्रु

मित्र

मित्र

 

मित्र

मित्र

मित्र

मित्र

शुक्र

मित्र

मित्र

शत्रु

मित्र

मित्र

 

शत्रु

मित्र

शत्रु

शनि

मित्र

शत्रु

शत्रु

मित्र

मित्र

शत्रु

 

शत्रु

मित्र

राहु

मित्र

मित्र

मित्र

मित्र

मित्र

मित्र

शत्रु

 

शत्रु

केतु

शत्रु

शत्रु

शत्रु

शत्रु

मित्र

शत्रु

मित्र

शत्रु

 

                                                                                                                                               

पंचधा मैत्री

नैसर्गिक मैत्री और तात्कालिक मैत्री के संयुक्त स्वरूप को पंचधा मैत्री के नाम से जाना जाता है। पंचधा मैत्री चक्र में पांच प्रकार की स्थितियां होती है- अतिमित्र,मित्र,सम,शत्रु और अतिशत्रु। जब कोई गृह नैसर्गिक मैत्री में मित्र और तात्कालिक मैत्री में भी मित्र हो तो पंचधा मैत्री में ये अतिमित्र होता है। नैसर्गिक मैत्री में सम और तात्कालिक मैत्री में भी शत्रु हो तो पंचधा मैत्री में ये शत्रु होता है। नैसर्गिक मैत्री में शत्रु और तात्कालिक मैत्री में भी शत्रु हो तो पंचधा मैत्री में ये अतिशत्रु होता है।

पंचधा मैत्री चक्र में पांच प्रकार की मैत्री होती है- अतिमित्र,मित्र,सम,शत्रु और अतिशत्रु। जिसको हम नीचे दी गयी तालिका/सारणी से समझ सकते है।

 

नैसर्गिक मैत्री

तात्कालिक मैत्री

पंचधा मैत्री

मित्र

+

मित्र

=

अतिमित्र

मित्र

+

सम

=

मित्र

मित्र

+

शत्रु

=

सम

सम

+

मित्र

=

मित्र

सम

+

सम

=

सम

सम

+

शत्रु

=

शत्रु

शत्रु

+

मित्र

=

सम

शत्रु

+

सम

=

शत्रु

शत्रु

+

शत्रु

=

अतिशत्रु

 

उदाहरण कुंडली के आधार पर पंचधा मैत्री चक्र निम्न अनुसार होगी।

 

सूर्य

चंद्रमाँ

मंगल

बुध

गुरु

शुक्र

शनि

राहु

केतु

सूर्य

 

सम

अतिमित्र

शत्रु

अतिमित्र

सम

सम

सम

अतिशत्रु

चंद्रमाँ

सम

 

मित्र

सम

शत्रु

मित्र

शत्रु

सम

अतिशत्रु

मंगल

अतिमित्र

अतिमित्र

 

सम

अतिमित्र

शत्रु

शत्रु

सम

सम

बुध

सम

अतिशत्रु

मित्र

 

मित्र

अतिमित्र

मित्र

मित्र

शत्रु

गुरु

अतिमित्र

सम

अतिमित्र

सम

 

सम

मित्र

मित्र

मित्र

शुक्र

सम

सम

शत्रु

अतिमित्र

मित्र

 

सम

अतिमित्र

सम

शनि

सम

अतिशत्रु

अतिशत्रु

अतिमित्र

मित्र

सम

 

सम

सम

राहु

सम

सम

सम

मित्र

मित्र

अतिमित्र

सम

 

अतिशत्रु

केतु

अतिशत्रु

अतिशत्रु

सम

शत्रु

मित्र

सम

सम

अतिशत्रु

 

 

पंचधा मैत्री के आधार पर ग्रहों के सप्त वर्गी बल का साधन किया जाता है।पंचधा मैत्री के अनुसार अतिमित्र के गृह में गृह का बल 22 कला व 30 विकला होगा।मित्र के घर में 15 कला बल,सम के स्थान पर 7 कला 30 विकला,शत्रु के स्थान पर 3 कला 45 विकला,अतिशत्रु  के स्थान पर 1 कला 52 विकला बल,अपने ही भाव में 30 कला बल,मूलत्रिकोण राशि में 45 कला बल व् उच्च राशि में 60 कला बल मिलता है।


ग्रहों के कारकत्व और अन्य विशेषताएं

ज्योतिष में सभी ग्रहो के अपने कारकतत्व निर्धारित किये गए है ।भारतीय ज्योतिष में सात गृह तथा दो छाया गृह है। सूर्य,चंद्र,मंगल,बुध,वृहस्पति,शुक्र तथा शनि सात गृह है तथा राहु केतु छाया गृह है। इस लेख में हम सभी नौ ग्रहो के क्या-क्या कारकतत्व है  का सविस्तार बताने का प्रयास करने जा रहा हूँ। इस लेख के माध्यम से आप सभी ग्रहों के कारकतत्व को जान पाएंगे। यहाँ पर सामान्यतः उन्ही कारकत्व की प्रधानता दी गई जिसका प्रयोग ज्यादा होता है। ऐसे अनेक कारक है जिसको नहीं लिखा गया है इसका मुख्य कारन है उस कारकत्व का प्रयोग कम होना।

आत्मादि-आत्मादि के द्वारा जातक की आत्मा मन आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इनके कारक बलबान होंगे तो ये भी पुष्ट होंगे और यदि कारक निर्बल अवस्था में होगा तो फलस्वरूप ये भी निर्बल होंगे। वर्ण प्रश्न में नष्ट द्रव्यादि,चोर का रंग-रूप आदि तथा कुंडली में जातक के रंग रूप आदि की जानकारी गृह के वर्ण से प्राप्त होती है।

सूर्य | Sun

आइये जानते है ज्योतिष में सूर्य ग्रह के कारकत्व क्या-क्या है । सूर्य आत्मा, पिता, राजा, सरकार, प्रकाश, मान सम्मान, यश , प्रभाव अहम्, सहानुभूति स्वास्थ्य, दाएँ नेत्र, दिन, ऊर्जा, पराक्रम , राजनीति, चिकित्सा विज्ञान, गौरव, पित्त, कैल्शियम, दवा, तेज इत्यादि का कारक ग्रह है। यदि कोई जातक अपने पिता के स्वास्थ्य या कार्य के सम्बन्ध में जानना चाहता है तो उसे जन्मकुंडली में सूर्य ग्रह किस भाव तथा किस राशि में बैठे है को देखकर यह बताया जा सकता है। जैसे – यदि आपकी कुंडली में सूर्य नीच होकर रंध्र भाव में बैठा है या सूर्य पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि है तो निश्चित ही जन्म के समय आपके पिता कोई न कोई परेशानी में होंगे। इसी प्रकार अन्य विषयो के सम्बन्ध में समझना चाहिए।

चन्द्रमा | Moon

आइये जानते है ज्योतिष में चंद्र ग्रह के कारकत्व क्या-क्या है चन्द्रमा का सम्बन्ध हमारी भावना से है । कहा भी गया है चंद्रमा मनसो जातः। ग्रहों में सबसे तेज चलने वाला ग्रह चन्द्रमा है और चन्द्रमा मन का कारक है क्योकि मन भी सबसे तेज चलता है । ज्योतिष में चन्द्रमा मन, माता , जल, परिवर्तन, सम्मान, शीतलता, सत्ता, धन, यात्रा, मदुरता, भावना, आकर्षण, कफ, दुकानदार, दूध, मक्खन, फल, जड़ी-बूटी, महिला, वक्षस्थल, सुंदरता, कैंसर, अस्थमा, स्नायु, रोग इत्यादि विषयो का कारक ग्रह है ।

मंगल  | Mars

ज्योतिष शास्त्र ( Astrology ) में मंगल ( Mars)  ग्रह के कारकत्व क्या-क्या निम्नलिखित है भूमि से उत्पन्न होने के कारण भूमि का कारक ग्रह है तथा इसी कारण मंगल ग्रह को भौम भी कहा जाता है। मंगल ग्रह भाई, शक्ति, पराक्रम, साहस, प्रतियोगता, उत्तेजना, षडयन्त्र, क्रोध, शत्रु, विपक्ष विवाद, शस्त्र, सेनाध्यक्ष, उत्तेजना, षडयन्त्र, युद्ध, दुर्घटना जलना, घाव, अचल सम्पत्ति छोटा भाई, चाचा के लड़के, मैकेनिकल तथा इलेक्ट्रिकल इंजीनियर, चील, कबूतर, बिल्ली, मुर्गा, लाल, पत्थर, चोट, चेचक, अपेंडिक्स, हार्निया, पित्त इत्यादि का कारक ग्रह है।

बुध | Mercury

बुध ( Mars) बुद्धि का कारक ग्रह है यदि किसी जातक का बुध उच्च का या केंद्र त्रिकोण में बैठा है तो जातक बहुत ही बुद्धिमान होता है। बुध कारक ग्रह है – वाणी, बुद्धिमता, शिक्षा, गणित, तर्क, अभिव्यक्ति, ज्योतिषी, लेखाकार, व्यापार, कमीशन एजेंट, प्रकाशन, नाटक, नृत्य, मित्र, मामा, बाग़, प्रज्ञा, मिथुन, तुला, तथा कुम्भ में तरुण अवस्था,पेट मुँह चर्म इत्यादि।

बृहस्पति | Jupiter

गुरु ग्रह ( Jupiter )  ज्ञान धन तथा संतान का कारक ग्रह है यदि कुंडली में संतान सुख देखना है तो सबसे पहले गुरु ग्रह की स्थिति को देखा जाता है। गुरु ग्रह विवेक, ज्ञान, ज्योतिषी, पुरोहित, परामर्शी, सत्य, विदेश में घर, भविष्य, सहायता, तीर्थयात्रा,नदी, मीठा खाद्य पदार्थ,विश्वविद्यालय, पान,शाप, मंत्र, दाहिना कान, नाक, स्मृति, पदवी, बडा़ भाई, पवित्र स्थान, धामिर्क ग्रन्थ का पठन, पाठन, गुरु, अध्यापक, धन बैंक,शरीर की मांसलता, धार्मिक कार्य ईश्वर के प्रति निष्ठा, दार्शिकता, दान, परोपकार, फलदार वृक्ष, पुत्र, पति, पुरस्कार, जांघ, लिवर, हार्निया इत्यादि का कारक ग्रह है।

शुक्र | Venus

जन्मकुंडली ( Horoscope)  में शुक्र ग्रह शुभ ग्रह है यह ग्रह पति/पत्नी, विवाह ( Marriage) , सौंदर्य, प्रेम सम्बन्ध, रतिक्रिया,शयन कक्ष, सौंदर्य, संगीत, काव्य, इत्र, सुगन्ध, आखों की रोशनी,सफेद अथवा क्रीम रंग, वाहन, घर की सजावट, ऐश्वर्य, सहयोग, फूल, फूलदार वृक्ष, पौधे ,आभूषण, जलीय स्थान, सिल्कन कपड़ा, सुख सामग्री, तंत्र-मंत्र, जुआ, रेस, मधु, सिनेमा, गाय-भैस, चित्रकार, रसायन, नमक, स्त्री रोग, गुप्त रोग, कपड़ा, इत्र कारखाना, दही, आँख, आम वृक्ष इत्यादि का कारक ग्रह है।

शनि | Saturn

शनि ग्रह ( Saturn)  कर्म आयु, दुख, रोग, मृत्यु, संकट अनादर, गरीबी, आजीविका ( Job) , कर्मचारी, सेवक नौकरियां, वृद्ध, लोहा, तेल, खनिज पदार्थ, मन्ति, पंगुता, अनैतिक तथा अधार्मिक कार्य, विदेशी भाषा, विज्ञान तथा तकनीकी शिक्षा मेहनत वाले कार्य, कृषीगत व्यवसाय, जेल, हास्पीटल में पड़े रहना, अगंभगं, लाभ, लालच बिस्तर पर पड़े रहना, चार दिवारी में बन्द रहना,वायु, जोड़ों के दर्द, कठोरवाणी, कब्रिस्तान, उदासीन, अध्यात्म, ठग, वृद्धावस्था, पक्षाघात, ह्रदय दर्द, ट्यूमर, ब्रॉन्कायटिस आदि।

राहु | Rahu

राहु ग्रह दादा का कारक ग्रह है। राहु, चोरी, विदेशी लोग, विष, धामिर्क यात्राए, कठोर वाणी, जुआ, भ्रामक तर्क, गतिशीलता, यात्राए, विजातीय लोग,चोरी, दुष्टता, विधवा, त्वचा की बिमारिया, होठ दर्द. कार्य में रूकावट, दांत, तुतलाना, देरी, आत्महत्या, पागलपन ( Depression)  , कुष्ट, रक्त चाप, स्पलीन इत्यादि का कारक ग्रह है।

केतु | Ketu

केतु नाना तथा मोक्ष का कारक ग्रह है यह ग्रह कारक है मंदिर, कुष्ट, गुप्त रोग, गुप्त ज्ञान, चिकित्सक, पेट दर्द, जादू, काला, चना, कुत्ता, सींग वाले पशु, दर्द, ज्वर,खुजली, घाव,तांत्रिक, तन्त्र, जादू-टोना, शत्रुओं को नुकसान पहुंचाना, बहुरंगी पक्षी तथा मोक्ष का कारक ग्रह है।

 

 ग्रहों के कारकतत्व

गृह

कारकतत्व

सूर्य

आत्मा

चंद्रमाँ

मन

मंगल

बल

बुध

वाणी

गुरु

ज्ञान

शुक्र

काम वासना

शनि

दुःख

 

ग्रहों के रंग

गृह

रंग

सूर्य

नारंगी

चंद्रमाँ

क्रीम

मंगल

लाल

बुध

हरा

गुरु

पीला

शुक्र

सफ़ेद(पारदर्शी)

शनि

कला/नीला

 

 

ग्रहों की दिशाएं

गृह

दिशा

सूर्य

पूर्व दिशा

चंद्रमाँ

उत्तर-पश्चिम दिशा

मंगल

दक्षिण दिशा

बुध

उत्तर दिशा   

गुरु

उत्तर-पूर्व

शुक्र

दक्षिण-पूर्व

शनि

पश्चिम

राहु/केतु

दक्षिण-पश्चिम

 

 

ग्रहों के वस्त्र

गृह

वस्त्र

सूर्य

मोटा

चंद्रमाँ

नया

मंगल

जला हुआ

बुध

भीगा हुआ

गुरु

हाल का बना किन्तु नया नहीं

शुक्र

टिकाऊ

शनि

फटा-चिथड़ा

 

गृह-वृक्ष

गृह

वृक्ष

सूर्य

मोटे तने का पेड़

चंद्रमाँ

रबड़ का पेड़

मंगल

निम्बू का पेड़

बुध

फलहीन वृक्ष

गुरु

फलहीन वृक्ष

शुक्र

फूलदार वृक्ष

शनि

अनुपयोगी पेड़

 

 

 

गृह-स्थान

गृह

स्थान

सूर्य

मंदिर

चंद्रमाँ

जलीय स्थान

मंगल

आग्नेय स्थान

बुध

क्रीड़ा-स्थल

गुरु

कोषागार

शुक्र

शयनकक्ष

शनि

गंदे स्थान

 

गृह-रत्न

गृह

रत्न

सूर्य

माणिक्य

चंद्रमाँ

मोती

मंगल

मूंगा

बुध

पन्ना

गुरु

पुखराज

शुक्र

हीरा/ जरीकन

शनि

नीलम

राहु

गोमेद

केतु

लहसुनिया

 

 

ग्रहों के गुण

सात्विक: सूर्य,चंद्र,गुरु

राजसिक: बुध,शुक्र

तामसिक: मंगल,शनि

  

गृह-ऋतु

बसंत: शुक्र

ग्रीष्म: सूर्य,मंगल

वर्षा: चंद्र

शरद: बुध

हेमंत: गुरु

शिशिर: शनि

 

गृह- स्वाद

तिक्त/चरपरा: सूर्य

लवणीय: चंद्र

कटु/कड़वा: मंगल

मधु: गुरु

खट्टा: शुक्र

 

ग्रहों का मंत्रीमंडल

सूर्य: राजा

चंद्र: मंत्री

मंगल: सेनापति

बुध: राजकुमार

गुरु,शुक्र: सलाहकार

शनि: सेवक

 

 

 

 

ग्रहों की इन्द्रियां

सूर्य,मंगल: रूप

चंद्र,शुक्र: रस

बुध: गंध

गुरु: शब्द

शनि: स्पर्श

 

 

गृह-धातु

मंगल,शनि: ताम्बा

चंद्र,शुक्र: चांदी

बुध: कास्य

गुरु: सोना

शनि: लोहा

राहु/केतु: शीशा

 

ग्रहों की अन्य विशेषताएं इस प्रकार हैं- सूर्य एवं चंद्र को प्रकाश ग्रह कहा गया हैं। गुरु और शुक्र शुभ ग्रह है। चंद्र सशर्त और बुध भी सशर्त शुभ/अशुभ होते हैं।

चंद्र पक्षबली होने पर शुभ और बुध शुभ ग्रहों के साथ होने पर ही शुभ होता है अन्यथा वह अशुभ होता है। सूर्य, शनि, मंगल, राहु और केतु अशुभ ग्रह हैं। चंद्र कॄष्ण पक्ष का हो और निर्बल हो तो अशुभ है और बुध भी पापी ग्रहों के साथ होने पर पापी है। मंगल, गुरु और शनि ग्रह बहिर्युति ग्रह हैं। बुध और शुक्र अन्तर्युति ग्रह है।

राशिचक्र में ग्रहों को दैनिक औसत गति दी गई हैं। सूर्य प्रतिदिन एक डिग्री चलते हैं। चंद्र 12 अंश, मंगल 42 कला, बुध 75 कला, गुरु 5 कला, शुक्र 75 कला, शनि 2 कला और राहू/केतु 3 कला चलते हैं। ग्रहों में सूर्य, मंगल और गुरु को पुरुष लिंगी कहा जाता है। चंद्र और शुक्र को स्त्री ग्रह कहा गया हैं, बुध और शनि ग्रहों को नपुंसक ग्रह कहा गया है। गुरु और शुक्र को ब्राह्मण जाति का माना गया है। सूर्य और मंगल ग्रह क्षत्रिय हैं, बुध और चंद्र वैश्य हैं, शनि जाति से शूद्र हैं। ग्रहों के तत्वों में बुध को पृथ्वी तत्व, चंद्र और शुक्र को जल तत्व, सूर्य और मंगल को अग्नि तत्व, शनि ग्रह को वायु तत्व और गुरु को आकाश तत्व का कारक ग्रह कहा गया है।

इसके अतिरिक्त सूर्य को हड्डियों का कारक, चंद्र को खून, मंगल को मज्जा, बुध को त्वचा, गुरु को वसा, शुक्र को वीर्य और शनि को मांसपेशियों का कारक माना गया है। अब यदि हम ग्रहों के वात/पित्त/कफ की बात करें तो सूर्य और मंगल को पित्त, शनि को वात, गुरु, चंद्र, शुक्र को कफ और बुध को वात/पित्त/ कफ तीनों का मिश्रण कहा गया हैं। 

सूर्य 6 माह की अवधि, चंद्र 48 मिनट, मंगल एक दिन (जिसमें दिन और रात दोनों शामिल हों), बुध 2 माह, गुरु 1 माह, शुक्र 1 पक्ष (15 दिन) और शनि को एक वर्ष की अवधि दी गई है।


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