शरीर, रंग रूप, व्यक्तित्त्व,चेहरा,स्वस्थ्य,चरित्र,स्वाभाव,बुद्धि,आयुष,सौभाग्य,सम्मान,प्रतिष्ठा,समृद्धि।
द्वितीय भाव:
सम्पति,परिवार,वाणी,दाहिनी आँख,नाखून,जिव्हा,नासिका,दन्त,उद्देश्य,भोजन,कल्पना,अवलोकन, जवाहरात,गहने,कीमती पत्थर,अप्राकतिक मैथुन, ठगना और जीवन साथियों के बीच हिंसा ।
तृतीया भाव:
छोटे भाई और बहन,सहोदर भाई बहिन,सबंधी,रिस्तेदार,पडोसी,साहस,निश्चयता,बहादुरी,सीना,दांया कान,हाथ, लघु यात्रायें,नाड़ी तंत्र,संचारण,सम्प्रेषण,लेखन,पुस्तक संपादन,समाचार पत्रों की सूचना,विवरण,संवाद,इत्यादि लिखना,शिक्षा,बुद्धि, इत्यादि।
चतुर्थ भाव:
माता सबंधी,वाहन,घरेलु वातावरण,खजाना,भूमि,आवास,शिक्षा,ज़मीन,ज्यादाद,अनुवांशिक प्रकति,जीवन का उत्तरार्ध भाग,छिपा खजाना,गुप्त प्रेम सबंधी,सीना,विवाहित जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार का हस्तछेप, आभूषण,कपडे।
पंचम भाव:
संतान,बुद्धि,प्रसिद्धि,श्रेणी/वर्ग, उदर,प्रेम सम्बन्ध, सुख, मनोरंजन,जुआ,पिछला जनम,आत्मा,जीवन स्तर,पद,प्रतिष्ठा, कलात्मकता, खेल-कूद में निपुणता ,ह्रदय,पीठ,प्रतियोगिता में सफलता।
षष्ष्ठ भाव:
रोग,कर्जा,विवाद,आभाव,चोट,मां,ममी,शत्रु,सेवा,भोजन,कपडे,चोरी,बदनामी,पालतू पशु/पछी,कमर,अधीनस्थ कर्मचारी,किरायेदार।
सप्तम भाव्:
पति/पत्नी का व्यक्तित्व, जीवन साथी के साथ रिस्ता, अभिलाषा,काम शक्ति,साझेदारी,प्रत्यक्ष शत्रु,मुआवजा,यात्रा,कानून,जीवन के लिए खतरा,विदेशों में प्रभाव और प्रतिष्ठा,अपने और जनता के साथ रिश्ते, यौन रोग,मूत्र संक्रमण।
अष्ठम भाव्:
आयु,मृत्यु का तरीका, जननांग,रुकावट,दुर्घटना,मुफ्त की सम्पंति,विरासत,बापौती,पैतृक सम्पति,वसीयत,पेंशन,परिदान,चोरी डकैती, चिंता,रूकावट,युद्ध,शत्रु,विरासत में मिला धन, मानसिक वेदना, विवाहोतर जीवन।
नवम भाव्:
सौभाग्य,धरम,चरित्र,दादा/दादी,लम्बी यात्रायें,पोता,बुजुर्गो व् देवताओं के प्रति श्रद्धा/भक्ति,आधयात्मिक उन्नति, स्वपन,उच्च शिक्षा,पत्नी का छोटा भाई,भाई की पत्नी,तीर्थ यात्रा, दर्शन,आत्मो से संपर्क।
दशम भाव:
व्यवसाय,कीर्ति,शक्ति,अधिकार, नेतृत्व,सत्ता,सम्मान,सफलता,रुतवा,घुटने,चरित्र,कर्म,जीवन में उद्देस्य, पिता,मालिक,नियोजक,अधिकारी,अधिकारीयों से संपर्क, व्यापर में सफलता,नौकरी में तरक्की,सर्कार से सम्मान।
एकादश भाव:
लाभ,समृद्धि,कामनाओ की पूर्ति,मित्र ,बड़ा भाई, टखने,बांया कान, परमार्शदाता,प्रिय,रोग,मुक्ति,प्रत्याशा,पुत्र बधु,इच्छाऐ,कार्यो में सफलता।
द्वादश भाव:
हानि,दंड,कारावास,व्यय,दान,विवाह,जल आश्रयों से सम्बंधित कार्य,वैदक यज्ञ,अदा किया गया जुर्माना,विवाहेतर काम क्रीड़ा ,यौन रोग,काम क्रीड़ा में कमजोरी,शयन सुविधा, ऐयाशी,भोग विलास,पत्नी की हानि,शादी में नुकसान,नौकरी छूटना,अपने लोगो से अलगाव,सम्बन्ध विछेद,लम्बी यात्रायें, विदेश में व्यवस्थापन।
भावो की संज्ञा
जन्म कुंडली में लग्न केंद्र बिंदु होता है। जैसा की हमारे शास्त्रों में इंगित है की मनुष्य जीवन को धर्म,अर्थ,काम तथा मोक्ष प्राप्त करने का साधन माना जाता है।इस लिए जन्म कुंडली को भी धर्म,अर्थ,काम तथा मोक्ष के तीन परिराशियों में बांटा गया है।
तालिका संख्या 4.1
संज्ञा | कारक |
धर्म | 1 5 9 |
अर्थ | 2 6 10 |
काम | 3 7 11 |
मोक्ष | 4 8 12 |
केंद्र | 1 4 7 |
त्रिकोण भाव | 1 5 9 |
पणफर भाव | 2 5 8 11 |
अपोक्लिम भाव | 3 6 9 12 |
चतुरस भाव | 4 8 |
उपचय भाव | 3 6 10 11 |
अनुपचय भाव | 1 2 4 5 7 8 9 12 |
त्रिकया दुष्ट भाव | 6 8 12 |
पतित भाव | 6 12 |
मारक भाव | 2 7 |
आयु भाव | 3 8 |
1. यदि कोई गृह केंद्र तथा त्रिकोण का स्वामी होता है तो वह गृह योगकारक होता है।
2. जो गृह 3,6,8,11 एवं 12 भावो के किन्ही दो का स्वामी होता है अकारक होता है।
3. चर लग्न में 11 भाव का स्वामी,स्थिर में 9 वे भाव का स्वामी और द्विस्वाभाव में 7 वे भाव का स्वामी बाधक होता है।
तालिका संख्या 4.2
लग्न |
योगकारक |
अकारक |
बाधक |
मेष |
सूर्य |
बुध |
शनि |
वृष |
शनि |
गुरु |
शनि |
मिथुन |
बुध |
मंगल |
गुरु |
कर्क |
मंगल |
बुध |
शुक्र |
सिंह |
मंगल |
शनि |
मंगल |
कन्या |
बुध |
मंगल |
गुरु |
तुला |
शनि |
गुरु |
सूर्य |
वृश्चिक |
चंद्रमाँ |
बुध |
चंद्रमाँ |
धनु |
गुरु |
शुक्र |
बुध |
मकर |
शुक्र |
गुरु |
मंगल |
कुम्भ |
शुक्र |
चंद्रमाँ |
शुक्र |
मीन |
गुरु |
शुक्र |
बुध |
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