Saturday, 29 August 2020

कुंडली/ जन्मपत्री, लग्न और भाव

जन्मपत्री-जन्मपत्री किसी निश्चित स्थान पर किसी निश्चित समय के लिये आकाश का नक्शा होती हैं। जन्मपत्री में प्राणियों की जन्मकालिक ग्रहस्थिति से जीवन में होनेवाली शुभ अथवा अशुभ घटनाओं का निर्देश किया जाता है। जन्मपत्री का स्वरूप, फलादेश विधि और संसार के अन्य देशों एवं संस्कृतियों में उसके स्वरूप तथा शुभाशुभ निर्देश की प्रणालियों में बहुत सी चीजें दर्शित व बताई जाती हैं।
लग्न-लग्न उस क्षण को कहते हैं जिस क्षण आत्मा धरती पर अपनी नयी देह से संयुक्त होती है। व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है उसके कोण को लग्न कहते हैं। इसे प्रथम भाव के नाम से भी जाना जाता है।
जन्मपत्री के रूप
इस लेख में हम जानेंगे की कुण्‍डली में ग्रह एवं राशि इत्‍यादि को कैसे दर्शाया जाता है। साथ ही लग्‍न एवं अन्‍य भावों के बारे में भी जानेंगे। कुण्‍डली को जन्‍म समय के ग्रहों की स्थिति की तस्‍वीर कहा जा सकता है। कुण्‍डली को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि जन्‍म समय में विभिन्‍न ग्रह आकाश में कहां स्थित थे। भारत में विभिन्‍न प्रान्‍तों में कुण्‍डली को चित्रित करने का अलग अलग तरीका है। मुख्‍यत: कुण्‍डली को उत्‍तर भारत, दक्षिण भारत या बंगाल में अलग अलग तरीके से दिखाया जाता है। हम सिर्फ उत्‍तर भारतीय तरीके की चर्चा करेंगे।
कुण्‍डली से ग्रहों की राशि में स्थिति एवं ग्रहों की भावों में स्थिति पता चलती है। ग्रह एवं राशि की चर्चा हम पहले ही कर चुके हैं और भाव की चर्चा हम आगे करेंगे।भारत के उतरी भाग में प्रचलित जन्मपत्री का प्रारूप चित्र संख्या 3.1 के अनुसार होता है। उत्तर भारत की कुण्डली में लग्न राशि पहले स्थान में लिखी जाती है तथा फिर दाएं से बाएं राशियों की संख्या को स्थापित कर लेते हैं। अर्थात राशि स्थापना (anti-clock wise) होती हैं तथा राशि का सूचक अंक ही अनिवार्य रूप से स्थानों में भरा जाता है। एक उदाहरण कुण्‍डली से इसे समझते हैं।

चित्र संख्या 3.1

   

भारत के दक्षिणी भाग में प्रचलित जन्मपत्री का प्रारूप चित्र संख्या 3.2 के अनुसार होता है।

चित्र संख्या 3.2

इस रूप में राशियों की स्थिति चित्र संख्या 3.2 के अनुसार भावो में स्थिर कर दी जाती है। और लगन को चिन्ह से इंगित किया जाता है।

 

भारत के बंगाल और उसके पडोसी प्रांतो में में प्रचलित जन्मपत्री का प्रारूप चित्र संख्या 3.3 के अनुसार होता है इस रूप में राशियों की स्थिति चित्र संख्या 3.3 के अनुसार भावो में स्थिर कर दी जाती है और लगन को चिन्ह इंगित किया जाता है।

 

 

चित्र संख्या 3.3

      


ब्रह्माण्ड को, कालपुरुष को जिस प्रकार 12 राशियों(मेष,वृष,मिथुन,कर्क,सिंह,कन्या,तुला,वृश्चिक,धनु, मकर,कुम्भ और मीन) में बांटा गया  है। उसी प्रकार कालपुरुष को 12 भावो में भी बांटा गया  है। भाव स्थिर है व् प्रथम भाव को लग्न कहा गया  है। व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज(horizon) पर जो राशि उदित हो रही होती है उसके कोण को लग्न कहते हैं। इसे प्रथम भाव में लिखा जाता है।उसके बाद क्रमशः उदित होने वाली राशियों को द्वितीय,तृतीय भाव में लिखा जाता  है।भाव घडी की विपरीत दिशा/गति के अनुसार चलते है। वह गृह जो किसी भाव के कार्य को करता है उसे उस भाव का कारक गृह कहते है।भाव के कार्य को भाव का कारकतत्व कहते है।

भाव
थोडी देर के लिए सारे अंको और ग्रहों के नाम भूल जाते हैं। हमें कुण्‍डली में बारह खाने दिखेंगे, जिसमें से आठ त्रिकोणाकार एवं चार आयताकार हैं। चार आयतों में से सबसे ऊपर वाला आयत लग्‍न या प्रथम भाव कहलाता है। उदाहरण कुण्‍डली(चित्र संख्या 3.1) में इसे तीर से दर्शाया गया है  लग्‍न की स्थिति कुण्‍डली में सदैव निश्चित है। लग्‍न से एन्‍टी क्‍लॉक वाइज जब गिनना शुरू करें जो अगला खाना द्वितीय भाव कहलाजा है। उससे अगला खाना तृतीय भाव कहलाता है और इसी तरह आगे की गिनती करते हैं। साधारण बोलचाल में भाव को घर या खाना भी कह देते हैं। अ्ंग्रेजी में भाव को हाउस (house) एवं लग्‍न को असेन्‍डेन्‍ट (ascendant) कहते हैं।
भावेश
कुण्‍डली में जो अंक लिखे हैं वो राशि बताते हैं। उदाहरण कुण्‍डली में लग्‍न के अन्‍दर 1 नम्‍बर लिखा है अत: कहा जा सकता है की लग्‍न या प्रथम भाव में एक अर्थात मेष राशि पड़ी है। इसी तरह द्वितीय भाव में दूसरी अर्थात वृषभ राशि पड़ी है। हम पहले से ही जानते हैं कि मेष का स्‍वामी ग्रह मंगल एवं वृषभ का स्‍वामी ग्रह शुक्र है। अत: ज्‍योतिषीय भाषा में हम कहेंगे कि प्रभम भाव का स्‍वामी मंगल है (क्‍योंकि पहले घर में 1 लिखा हुआ है)। भाव के स्‍वामी को भावेश भी कहते हैं।
प्रथम भाव के स्‍वामी को प्रथमेश या लग्‍नेश भी कहते हैं। इसी प्रकार द्वितीय भाव के स्‍वामी को द्वितीयेश, तृतीय भाव के स्‍वामी को तृतीयेश इत्‍यादि कहते हैं।
ग्रहों की भावगत स्थिति
उदाहरण कुण्‍डली में उपर वाले आयत से एन्‍टी क्‍लॉक वाइज गिने तो चन्द्रमा वाले खाने तक पहुंचने तक हम तीन गिन लेंगे। अत: हम कहेंगे की चन्द्रमा  तीसरे भाव में स्थित हैं। इसी प्रकार केतु सातवें में,शनि आठवें में,वृहस्पति दसवे में,सूर्य और बुध  ग्‍यारवें में और  बारहवें  भाव में मंगल और शुक्र स्थित हैं।प्रथम या लग्‍न भाव में राहु विराजमान है। यही ग्रहो की भाव स्थिति है।
ग्रहों की राशिगत स्थिति
ग्रहों की राशिगत स्थिति जानना आसान है। जिस ग्रह के खाने में जो अंक लिखा होता है, वही उसकी राशिगत स्थिति होती है। उदाहरण कुण्‍डली में चन्द्रमा के आगे 3 लिखा है अत: चन्द्रमा 3 अर्थात मिथुन राशि में स्थित हैं। इसी प्रकार केतु के आगे सात लिखा है अत:वह तुला  राशि में स्थित हैं जो कि राशिचक्र की सातंवी राशि है।
याद रखें कि ग्रह की भावगत स्थिति एवं राशिगत स्थिति दो अलग अलग चीजें हैं। इन्हें लेकर कोई असमंजस नहीं होना चाहिए।



 


 

 

 

 

 

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