अहोरात्र (दिन-रात) शब्द मे से पहला शब्द अ और आखरी शब्द त्र हटा देने पर "होरा" शब्द बना है। होरा का अर्थ है काल गणना या समय ज्ञान है। लग्न के आधे भाग को होरा अर्थात 15 अंश को कहते है।
एक राशि के दो भाग 30 / 2 को होरा कहते है। होरा मुख्यतया दो ग्रह सूर्य और चन्द्र की मानी गई है।
01- जब विषम (1, 3, 5, 7, 9, 11) राशि हो, तो प्रारम्भिक 15 अंश तक सूर्य की होरा होती है, उसके बाद 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है। (पूर्वार्द्ध यानि 00 से 15 अंश)
02 - जब सम (2,4, 6, 8, 10, 12) राशि हो, तो प्रारम्भिक 15 अंश तक चन्द्र की होरा होती है, उसके बाद 30 अंश तक सूर्य की होरा होती है। (उत्तरार्द्ध यानि 15 से 30 अंश)
एक राशि के दो भाग 30 / 2 को होरा कहते है। होरा मुख्यतया दो ग्रह सूर्य और चन्द्र की मानी गई है।
01- जब विषम (1, 3, 5, 7, 9, 11) राशि हो, तो प्रारम्भिक 15 अंश तक सूर्य की होरा होती है, उसके बाद 30 अंश तक चन्द्रमा की होरा होती है। (पूर्वार्द्ध यानि 00 से 15 अंश)
02 - जब सम (2,4, 6, 8, 10, 12) राशि हो, तो प्रारम्भिक 15 अंश तक चन्द्र की होरा होती है, उसके बाद 30 अंश तक सूर्य की होरा होती है। (उत्तरार्द्ध यानि 15 से 30 अंश)
महर्षि पराशर अनुसार जातक किस लोक से आया है इसका विचार होरा से किया जाता है। परन्तु यह विषय वर्तमान मे प्रचलन मे नही है। सूर्य की होरा के स्वामी देवगण और चन्द्र की होरा के स्वामी पितृगण है। चन्द्रमा की होरा हो, तो जातक पितृ लोक (पूर्वज), सूर्य की होरा हो तो जातक देव लोक से आया है। सूर्य की होरा मे महर्षि पराशर ने पापत्व की कल्पना की है, जातक धर्म कर्म व उपासना के मार्ग पर चलकर पुनः देवत्व प्राप्त कर सकता है।
विशेष टिप्पणी : फलादेश में राजा शब्द का तात्पर्य मंत्री, सचिव, व्यवस्थापक, प्रबंधक, नेता, प्रमुख, प्रधान इत्यादि समझना चाहिये इसी प्रकार विदेश या दूरस्थ स्थान जन्म स्थान से भिन्न सभी स्थान समझे।
होरा फलादेश
जातक की जन्म कुंडली मे विषम राशि में क्रूर ग्रह स्थित होकर सूर्य की होरा मे हो, तो वह जातक उद्यमी, बलवान, धनाढ्य, क्रूर वृत्ति का होता है।
जातक की जन्म कुंडली मे शुभ ग्रह शुभ राशि म स्थित होकर चन्द्रमा की होरा में हो, तो वह जातक नम्र, विनयशील, आनंदी, प्रेमी, प्रतिभावान, भाग्यवान होता है।
1- उपरोक्त दोनो विपरीत स्थिति मे विपरीत फल होता है।
2- यदि मिली-जुली स्थिति हो या चन्द्रमा सम या विषम राशि का होकर सूर्य की होरा मे हो, और सूर्य की होरा मे शुभ अशुभ ग्रह हो, तो फल भी मिश्रित (मिला-जुला) होगा।
3- यदि जन्म कुंडली मे लग्न, चन्द्रमा, लग्नेश, चंद्र राशिश, चारो बलि हो, तो जातक दीर्घायु, दुःख और व्याधि रहित यशस्वी होता है।
जातक की जन्म कुंडली मे विषम राशि में क्रूर ग्रह स्थित होकर सूर्य की होरा मे हो, तो वह जातक उद्यमी, बलवान, धनाढ्य, क्रूर वृत्ति का होता है।
जातक की जन्म कुंडली मे शुभ ग्रह शुभ राशि म स्थित होकर चन्द्रमा की होरा में हो, तो वह जातक नम्र, विनयशील, आनंदी, प्रेमी, प्रतिभावान, भाग्यवान होता है।
1- उपरोक्त दोनो विपरीत स्थिति मे विपरीत फल होता है।
2- यदि मिली-जुली स्थिति हो या चन्द्रमा सम या विषम राशि का होकर सूर्य की होरा मे हो, और सूर्य की होरा मे शुभ अशुभ ग्रह हो, तो फल भी मिश्रित (मिला-जुला) होगा।
3- यदि जन्म कुंडली मे लग्न, चन्द्रमा, लग्नेश, चंद्र राशिश, चारो बलि हो, तो जातक दीर्घायु, दुःख और व्याधि रहित यशस्वी होता है।
विशेष फल :
01, होरा लग्न सिंह हो और सूर्य उसी मे हो, तो जातक रजोगुणी, उच्च पदाभिलाषी होता है।
02, होरा लग्न मे सूर्य के साथ गुरु, शुक्र हो, तो जातक धनी, मानी, नेता या शासक होता है।
03, सूर्य की होरा हो, तो बाल्यावस्था मे न्यून सुख, जातक बाद मे परिश्रम से धनी होता है।
04, चन्द्रमा की होरा हो, तो जातक बाल्यावस्था मे सुखी तथा युवावस्था मे विदेश वासी होता है।
05, होरेश जन्मांग मे केन्द्रगत होकर शुभ दृष्ट हो या युक्त हो, तो जातक सुख, संपत्ति युक्त होता है।
06, होरेश जन्मांग मे अशुभ स्थानस्थ होकर अशुभ ग्रह से दृष्ट या युक्त हो, तो जातक सुख संपत्ति हीन, दुखी, कुल मर्यादा विरुद्ध कार्यकारी, नीच प्रकृति का होता है।
07, यदि होरा लग्न कर्क का हो और उसमे चन्द्रमा स्थित हो, तो जातक शांत प्रकृति, मातृ भक्त, लज्जाशील, बाग-बगीचा या कृषि मे रुचिवान, अल्प लाभ मे भी संतोषी होता है।
08, यदि शुभ ग्रह (गुरु, शुक्र) भी चन्द्रमा के साथ हो, तो जातक धार्मिक वृत्ति वाला, साधु विप्र सेवक, सदाचारी, धनाढ्य, सुसन्तति युक्त, सुखी होता है।
09, यदि होरा लग्न में चन्द्रमा के साथ पाप (अशुभ) ग्रह हो, तो जातक आचरण हीन, निर्धन, दुष्ट प्रकृति वाला, नीचकर्म रत, दु:खी होता है।
01, होरा लग्न सिंह हो और सूर्य उसी मे हो, तो जातक रजोगुणी, उच्च पदाभिलाषी होता है।
02, होरा लग्न मे सूर्य के साथ गुरु, शुक्र हो, तो जातक धनी, मानी, नेता या शासक होता है।
03, सूर्य की होरा हो, तो बाल्यावस्था मे न्यून सुख, जातक बाद मे परिश्रम से धनी होता है।
04, चन्द्रमा की होरा हो, तो जातक बाल्यावस्था मे सुखी तथा युवावस्था मे विदेश वासी होता है।
05, होरेश जन्मांग मे केन्द्रगत होकर शुभ दृष्ट हो या युक्त हो, तो जातक सुख, संपत्ति युक्त होता है।
06, होरेश जन्मांग मे अशुभ स्थानस्थ होकर अशुभ ग्रह से दृष्ट या युक्त हो, तो जातक सुख संपत्ति हीन, दुखी, कुल मर्यादा विरुद्ध कार्यकारी, नीच प्रकृति का होता है।
07, यदि होरा लग्न कर्क का हो और उसमे चन्द्रमा स्थित हो, तो जातक शांत प्रकृति, मातृ भक्त, लज्जाशील, बाग-बगीचा या कृषि मे रुचिवान, अल्प लाभ मे भी संतोषी होता है।
08, यदि शुभ ग्रह (गुरु, शुक्र) भी चन्द्रमा के साथ हो, तो जातक धार्मिक वृत्ति वाला, साधु विप्र सेवक, सदाचारी, धनाढ्य, सुसन्तति युक्त, सुखी होता है।
09, यदि होरा लग्न में चन्द्रमा के साथ पाप (अशुभ) ग्रह हो, तो जातक आचरण हीन, निर्धन, दुष्ट प्रकृति वाला, नीचकर्म रत, दु:खी होता है।
होरा फल :
यदि सूर्य यानि सिंह राशि की होरा हो, तो जातक कुआचरणी, धूर्त, कुरुप, दुर्जन, पापी, नीच, सुख-धन से रहित, क्रूर, गुणहीन होता है। सूर्य की होरा मे शीघ्र गमन करने वाला, कठोर हृदयी , कामी, पर स्त्री को जीतने वाला, देव-ब्राम्हण का निंदक, बकवादी होता है।
चन्द्रमा की होरा जातक बहुत सुखी, गुणवान, दुष्टचित्त, कृश देह, पुत्र विरोधी, चंचल लक्ष्मी से युक्त, स्वदेश मे रहने वाला, गायक होता है। जातक विदेश मे लाभ देने वाला, शुभ दृष्टि होता है।
यदि सूर्य यानि सिंह राशि की होरा हो, तो जातक कुआचरणी, धूर्त, कुरुप, दुर्जन, पापी, नीच, सुख-धन से रहित, क्रूर, गुणहीन होता है। सूर्य की होरा मे शीघ्र गमन करने वाला, कठोर हृदयी , कामी, पर स्त्री को जीतने वाला, देव-ब्राम्हण का निंदक, बकवादी होता है।
चन्द्रमा की होरा जातक बहुत सुखी, गुणवान, दुष्टचित्त, कृश देह, पुत्र विरोधी, चंचल लक्ष्मी से युक्त, स्वदेश मे रहने वाला, गायक होता है। जातक विदेश मे लाभ देने वाला, शुभ दृष्टि होता है।
सभी राशियो का पृथक-पृथक फल :
मेष - मेष राशि की प्रथम होरा (00 से 15 अंश) मे जातक प्रबल दृष्टि, धनवान, तोते की तरह नाक वाला, स्थूल लम्बे हाथ वाला होता है। मेष राशि की द्वितीय होरा (16 से 30 अंश) मे जातक चोर, प्रमादी, हाथ पैर मे अधिक उंगली वाला या शुष्क खुरदरी उंगली वाला, सुन्दर दीर्घ नेत्र, स्थूल शरीर, चतुर, सुबुद्धि होता है।
मेष - मेष राशि की प्रथम होरा (00 से 15 अंश) मे जातक प्रबल दृष्टि, धनवान, तोते की तरह नाक वाला, स्थूल लम्बे हाथ वाला होता है। मेष राशि की द्वितीय होरा (16 से 30 अंश) मे जातक चोर, प्रमादी, हाथ पैर मे अधिक उंगली वाला या शुष्क खुरदरी उंगली वाला, सुन्दर दीर्घ नेत्र, स्थूल शरीर, चतुर, सुबुद्धि होता है।
वृषभ - वृषभ राशि के पूर्वार्ध यानि प्रथम होरा मे जातक सुन्दर, विशाल नेत्र व ललाट तथा वक्ष वाला, साहसी, स्त्रियो के वशीभूत, स्थूल व उतर शरीर वाला होता है। वृषभ के उत्तरार्ध यानि द्वितीय होरा मे जातक स्थूल व दीर्घ शरीर, पतली कमर, सुन्दर केश वाला, उदार, साहसी होता है।
मिथुन - मिथुन राशि की प्रथम होरा मे जातक चौड़ी कमर वाला, मुलायम केश, अति दक्ष, चतुर, शूरवीर, कामी, रति सुख लोभी, धनी, बुद्धिमान होता है। मिथुन की द्वितीय होरा मे जातक पर स्त्री भोगी, कामी, कर्मठ, वीर, सौम्य प्रकृति, व्यवहार कुशल, कोमल नेत्र वाला होता है।
कर्क - कर्क की पहली होरा मे जातक मांसल देह, समानुपाती अंग, साहसी, मंद दृष्टि, धीर, चंचल, अशांत, सांवला रंग, कटे होंठ वाला, कृतघ्न होता है। कर्क के दूसरी होरा मे जातक जुआरी, पर्यटनी या घुमक्कड़, चौड़ा वक्ष, सत्य कार्यकारी, पुष्ट शरीरी होता है।
सिंह - सिंह राशि की प्रथम होरा मे जातक लालिमा युक्त आंखे वाला, साहसी कार्य करने वाला, कलह प्रिय, टेड़े स्वभाव वाला होता है। सिंह की द्वितीय होरा मे जातक स्वादिष्ट पकवानो का रशिया, स्त्रियो के प्रति आकर्षित, वस्त्र का इच्छुक, बहु चेष्टि, विषम अंग वाला, अल्प पुत्रवान, दानी, धार्मिक, प्रतिष्ठित होता है।
कन्या - कन्या राशि की प्रथम होरा मे जातक कोमल शरीर, सुन्दर, सुभाषी, स्त्री से मधुर प्रेम करने वाला, गायक, सुभग (स्वभाव से मनोहर) होता है। कन्या के द्वितीय होरा मे जातक लिपक, लेखक, विद्वान्, भाग्य के उतार-चढ़ाव दोनो से युक्त, सुखी, ठिगना होता है।
तुला - तुला राशि के पूर्वार्द्ध (00 से 15 अंश) मे जातक गोल मुख, उन्नत नासिका, सुन्दर नेत्र, विलासी, मजबूत हड्डी वाला, स्थूल देह, स्वजनो का प्रिय होता है। तुला राशि के उत्तरार्द्ध मे जातक तेजस्वी, धन सम्पन्न, अर्ध स्थिर, काले घुंगराले बाल वाला, कपटी, कुरूप पंजे व छोटे पैर वाला होता है।
वृश्चिक - वृश्चिक के पूर्वार्द्ध मे जातक पीली या भूरी आँखे, साहसी कर्म करने वाला, युद्ध मे शूर, दुष्ट स्वभाव, स्त्री प्रिय, तेजस्वी होता है। व्रश्चिक के उत्तरार्द्ध मे जातक उन्नति वान, मोटे अंग वाला, राजा के निकट, बहु मित्र वाला, नेत्र हीन या नेत्र रोगी होता है।
धनु - धनु की प्रथम होरा मे जातक विदीर्ण, बड़ा मुख व वक्ष वाला, तीखे नेत्र वाला, बाल्यकाल मे गुरु या परिवार से त्यक्त, तपस्वी होता है। धनु की द्वितीय होरा मे जातक कमल सामान नेत्र वाला, शास्त्रार्थ ज्ञानी, दानी, सुन्दर, सुभाषी, धनवान, यशस्वी होता है।
मकर - मकर के पूर्वार्द्ध होरा मे जातक मृग के सामान नेत्र वाला, कृष्ण वर्ण, सुन्दर, स्त्रियो को जीतने वाला, धूर्त, अन्न का इच्छुक, सुकर्मी उंची नाक वाला, धनवान होता है। मकर के उत्तरार्द्ध होरा मे जातक अनुराग दृष्टि, दूर-दूर तक यात्रा करने वाला, मुर्ख, अधिक रोम वाला, मूर्ख, भयानक काम करने वाला होता है।
कुम्भ - कुम्भ की प्रथम होरा मे जातक स्त्रियो का मित्र, मृदु स्वभाव, अल्प पुत्र वाला, सदगुणी, शूर, सुसंस्कृत, कलह प्रिय होता है। कुम्भ की द्वितीय होरा मे जातक लाल विदीर्ण नेत्र वाला, ठिगना, एक ही स्थान पर ठहरने वाला, बेईमान, कंजूस, दुःखी, कपटी, असत्यवादी होता है।
मीन - मीन की पहली होरा में हस्व-दीर्घ सुन्दर शरीर वाला, उन्नत ललाट, चौड़े वक्ष वाला, स्त्रियो को चाहने वाला, यशस्वी, कर्म मे चतुर, शूरवीर होता है , मीन की दूसरी होरा मे ऊँची नाक वाला, निपुण, बुद्धिमान, सुंदर नेत्र वाला, स्त्रियो का प्रिय, सुभग, सुखी दाम्पत्य जीवन वाला होता है।
विशेष फलादेश :
- यदि सूर्य चन्द्रमा मे से कोई बलवान होकर होरापति होकर शुभ स्थान या केंद्र स्थान मे हो, तो उसकी दशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा मे इष्ट फल देता है। होरापति बलवान होकर स्वयं की होरा मे हो, तो पूर्ण फल देता है। जन्म कुंडली के अन्य स्थानो मे हो, तो अपने स्वामी के योग मे न्यून फल देता है।
- होरा मे शुभ ग्रह - सुन्दर रूप, बहु धन उपार्जन, हमेशा श्रेष्ट व इष्ट फल देने वाला होता है।
- होरा मे अशुभ ग्रह - जातक टेडी दृष्टि वाला (भेंगा) नष्ट करने वाला, वक्री, वकृत दांत, होंठ वाला होता है।
- जन्म कुंडली का धनेश या लाभेश अथवा द्वितीय या एकादश मे स्थित ग्रह होरा लग्न मे हो, तो जातक धन व लाभ मे वृद्धि पाता है। जन्म कुंडली का व्ययेश या व्यय स्थान का कोई ग्रह यदि होरा लग्न मे हो, तो खर्च अधिक व अनिष्ट परिणाम होते है।
सूर्य - सिंह राशि की होरा मे ग्रह फल :
01 सूर्य की होरा मे सूर्य हो, तो जातक तीक्ष्ण प्रकृति, पित्तरोगी, स्वजनो से अपमानित, इच्छित वस्तुओ से वियोग, कलह प्रिय, धन का नाश, दुःखी, प्रबल शत्रु वाला होता है।
02 सूर्य की होरा मे चन्द्र हो, तो जातक कामुक, स्त्रियो से पराजित, अपराधी, भाई बंधु से दूर, शारीरिक व्याधियो से परेशान, शत्रुओ से पराजित होता है।
03 सूर्य की होरा में मंगल हो, तो जातक भाई बंधु का प्रिय, कर्मशील, साहसी, अनेक रोगो से जन्म से ही युक्त, पित्त रोगी होता है। मतान्तर से शूरवीर, धनी यशस्वी होता है।
04 सूर्य की होरा मे बुध हो, तो जातक तीक्ष्ण स्वभावी, चालक, धूर्त, कुआचरणी, प्रतापहीन, कई पापो मे रत, देवता-ब्राम्हण का निंदक, निंदा रशिक होता है।
05 सूर्य की होरा मे गुरु हो, तो जातक स्वक्षेत्र मे अग्रगामी, महाक्रोधी, लोभी, गुप्त पाप करने वाला, वाकदोषी, तीक्ष्ण स्वभाव, तर्क करने वाला होता है।
06 सूर्य की होरा मे शुक्र हो, तो जातक मूर्ख, निर्धन, कुआचरणी, मिथ्याचारी, हिंसा मे रत, कामी, चुगलखोर, दूसरो का निंदक, धर्म से विमुख होता है।
07 सूर्य की होरा मे शनि हो, तो जातक शूरवीर, पराक्रमी, अनेक शत्रु वाला, धर्म से पतित, अभिमानी, पर स्त्री मे आसक्त या दासी पति होता है।
02 सूर्य की होरा मे चन्द्र हो, तो जातक कामुक, स्त्रियो से पराजित, अपराधी, भाई बंधु से दूर, शारीरिक व्याधियो से परेशान, शत्रुओ से पराजित होता है।
03 सूर्य की होरा में मंगल हो, तो जातक भाई बंधु का प्रिय, कर्मशील, साहसी, अनेक रोगो से जन्म से ही युक्त, पित्त रोगी होता है। मतान्तर से शूरवीर, धनी यशस्वी होता है।
04 सूर्य की होरा मे बुध हो, तो जातक तीक्ष्ण स्वभावी, चालक, धूर्त, कुआचरणी, प्रतापहीन, कई पापो मे रत, देवता-ब्राम्हण का निंदक, निंदा रशिक होता है।
05 सूर्य की होरा मे गुरु हो, तो जातक स्वक्षेत्र मे अग्रगामी, महाक्रोधी, लोभी, गुप्त पाप करने वाला, वाकदोषी, तीक्ष्ण स्वभाव, तर्क करने वाला होता है।
06 सूर्य की होरा मे शुक्र हो, तो जातक मूर्ख, निर्धन, कुआचरणी, मिथ्याचारी, हिंसा मे रत, कामी, चुगलखोर, दूसरो का निंदक, धर्म से विमुख होता है।
07 सूर्य की होरा मे शनि हो, तो जातक शूरवीर, पराक्रमी, अनेक शत्रु वाला, धर्म से पतित, अभिमानी, पर स्त्री मे आसक्त या दासी पति होता है।
चन्द्रमा - कर्क राशि की होरा मे ग्रह फल :
01- चंद्र की होरा में सूर्य - जातक समृद्धशाली, निरोग, सुशील, अजातशत्रु, बंधु व स्वजनो मे प्रमुख, प्रतापी, सुखी, स्त्री रहित होता है।
02- चंद्र की होरा मे चन्द्र - जातक सुआचरणी, स्वधर्म मे रत, राज सम्मानित, उपकार को मानने वाला, उत्साही, सावधानी युक्त होता है।
03- चंद्र की होरा मे मंगल - जातक विनयशील, धन संपत्ति का भोगी, व्यव्हार कुशल, शत्रु रहित, संतान विछोह से दु:खी होता है।
04- चंद्र की होरा में बुध - जातक सौम्य, सुभग, सुशील, श्रेष्ट बुद्धि वाला, नीतिज्ञ, अथिति प्रिय, गुणी हमेशा उदार रहने वाला होता है।
05- चंद्र की होरा मे गुरु - जातक सुन्दर, सुभग, धन हेतु स्थिर क्रिया करने वाला, शरण दाता, धार्मिक स्वभाव वाला, मित्रो के प्रति निष्ठां रखने वाला होता है।
06- चंद्र की होरा मे शुक्र - जातक लोक व स्त्रियो का प्रिय, धनवान, गायक, गीत सुनने का शौकीन, ब्राम्हणो तथा राजा का प्रिय होता है।
07- चंद्र की होरा मे शनि - जातक बहु कीर्तिमान, यशस्वी, मनोहर, सुखी, धन संपन्न, आकर्षक, देवताओ का पूजक, विद्वानो का प्रिय होता है।
01- चंद्र की होरा में सूर्य - जातक समृद्धशाली, निरोग, सुशील, अजातशत्रु, बंधु व स्वजनो मे प्रमुख, प्रतापी, सुखी, स्त्री रहित होता है।
02- चंद्र की होरा मे चन्द्र - जातक सुआचरणी, स्वधर्म मे रत, राज सम्मानित, उपकार को मानने वाला, उत्साही, सावधानी युक्त होता है।
03- चंद्र की होरा मे मंगल - जातक विनयशील, धन संपत्ति का भोगी, व्यव्हार कुशल, शत्रु रहित, संतान विछोह से दु:खी होता है।
04- चंद्र की होरा में बुध - जातक सौम्य, सुभग, सुशील, श्रेष्ट बुद्धि वाला, नीतिज्ञ, अथिति प्रिय, गुणी हमेशा उदार रहने वाला होता है।
05- चंद्र की होरा मे गुरु - जातक सुन्दर, सुभग, धन हेतु स्थिर क्रिया करने वाला, शरण दाता, धार्मिक स्वभाव वाला, मित्रो के प्रति निष्ठां रखने वाला होता है।
06- चंद्र की होरा मे शुक्र - जातक लोक व स्त्रियो का प्रिय, धनवान, गायक, गीत सुनने का शौकीन, ब्राम्हणो तथा राजा का प्रिय होता है।
07- चंद्र की होरा मे शनि - जातक बहु कीर्तिमान, यशस्वी, मनोहर, सुखी, धन संपन्न, आकर्षक, देवताओ का पूजक, विद्वानो का प्रिय होता है।
वराहमिहिर अनुसार होरा फल :
सूर्य की होरा मे जातक ख्याति प्राप्त, उद्योगी, साहसी, धन से युक्त, तेजस्वी होता है। चन्द्रमा की होरा मे शुभ ग्रह शुभ होने पर कांतिवान, सुखी, सौभाग्यशाली, मृदु भाषी होता है। स्वयम की होरा मे दूसरो से अपनी रक्षा करने मे समर्थ, गुणो से युक्त, नायक होता है। अस्त ग्रह की होरा मे गुणो से विहीन होता है।
सूर्य की होरा मे जातक ख्याति प्राप्त, उद्योगी, साहसी, धन से युक्त, तेजस्वी होता है। चन्द्रमा की होरा मे शुभ ग्रह शुभ होने पर कांतिवान, सुखी, सौभाग्यशाली, मृदु भाषी होता है। स्वयम की होरा मे दूसरो से अपनी रक्षा करने मे समर्थ, गुणो से युक्त, नायक होता है। अस्त ग्रह की होरा मे गुणो से विहीन होता है।
मानसागरी अनुसार होरा फल :
सूर्य की होरा मे सूर्य हो, तो विद्वान्, पुरुषार्थी, नियंत्रित इन्द्रिया वाला, उद्यमी होता है।
सूर्य की होरा मे चंद्र हो, तो नीच बुद्धि, नीच कमीं, स्त्री से कष्ट, दोषी, बंधु हीन, रोगी, शत्रु के वशीभूत होता है।
सूर्य की होरा मे मंगल हो, तो सारथी, सज्जनो का प्रिय, शूरवीर, धैर्यवान, बहु मित्र वाला, सम्पत्तिवान होता है।
सूर्य की होरा मे बुध हो, तो व्यक्ति चुगलखोर, दरिद्री होता है।
सूर्य की होरा मे गुरु हो, तो, व्यक्ति लम्बे समय तक बीमार और बीमार रहते मृत्यु होती है।
सूर्य की होरा मे शुक्र हो, तो दुर्गम स्थान मे गमन की इच्छा होती है।
सूर्य की होरा मे शनि हो, तो व्यक्ति वृषली (बाँझ या वृद्धा) का पति होता है।
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चंद्र की होरा मे सूर्य हो, तो जातक अति दुःखी, गुप्त रोगी होता है।
चंद्र की होरा मे चन्द्र हो, तो जातक स्त्रियो के लिये आकर्षक, सुन्दर, पुत्रवान होता है।
चंद्र की होरा मे मंगल हो, तो विधुर अथवा विधवा योग होता है। पत्नी की मृत्यु होती है।
चंद्र की होरा मे बुध हो, तो जातक विख्यात, पतिव्रता औरत का स्वामी होता है।
चंद्र की होरा में गुरु हो, तो जातक निर्धन, तेजस्वी, अनिदनीय होता है।
चंद्र की होरा मे शुक्र हो, तो जातक अच्छी स्त्री का पति और स्त्री से सुखी होता है।
चंद्र की होरा में शनि हो, तो जातक दासी स्त्री का पति होता है।
सूर्य की होरा मे सूर्य हो, तो विद्वान्, पुरुषार्थी, नियंत्रित इन्द्रिया वाला, उद्यमी होता है।
सूर्य की होरा मे चंद्र हो, तो नीच बुद्धि, नीच कमीं, स्त्री से कष्ट, दोषी, बंधु हीन, रोगी, शत्रु के वशीभूत होता है।
सूर्य की होरा मे मंगल हो, तो सारथी, सज्जनो का प्रिय, शूरवीर, धैर्यवान, बहु मित्र वाला, सम्पत्तिवान होता है।
सूर्य की होरा मे बुध हो, तो व्यक्ति चुगलखोर, दरिद्री होता है।
सूर्य की होरा मे गुरु हो, तो, व्यक्ति लम्बे समय तक बीमार और बीमार रहते मृत्यु होती है।
सूर्य की होरा मे शुक्र हो, तो दुर्गम स्थान मे गमन की इच्छा होती है।
सूर्य की होरा मे शनि हो, तो व्यक्ति वृषली (बाँझ या वृद्धा) का पति होता है।
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चंद्र की होरा मे सूर्य हो, तो जातक अति दुःखी, गुप्त रोगी होता है।
चंद्र की होरा मे चन्द्र हो, तो जातक स्त्रियो के लिये आकर्षक, सुन्दर, पुत्रवान होता है।
चंद्र की होरा मे मंगल हो, तो विधुर अथवा विधवा योग होता है। पत्नी की मृत्यु होती है।
चंद्र की होरा मे बुध हो, तो जातक विख्यात, पतिव्रता औरत का स्वामी होता है।
चंद्र की होरा में गुरु हो, तो जातक निर्धन, तेजस्वी, अनिदनीय होता है।
चंद्र की होरा मे शुक्र हो, तो जातक अच्छी स्त्री का पति और स्त्री से सुखी होता है।
चंद्र की होरा में शनि हो, तो जातक दासी स्त्री का पति होता है।
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